Saturday, May 16, 2015

सच्चाई - हमारी बोध कथाएँ

 

हिमालय के पर्वतीय प्रदेश के कुमायूं नामक स्थान का राजा एक बार अल्मोड़े की घाटी में शिकार खेलने गया। उस समय वह स्थान घने जंगल से ढका था।

एक खरगोश झाड़ियों में से निकला। राजा ने उसका पीछा किया, किंतु अचानक वह खरगोश चीते में बदल गया और शीघ्र ही दृष्टि से ओझल हो गया।

उस आश्चर्यजनक घटना से स्तंभित हुए राजा ने पंडितों की एक सभा बुलाई और उनसे इसका अर्थ पूछा।

उन्होंने उत्तर दिया, “इसका अर्थ यह है कि जिस स्थान पर चीता दृष्टि से ओझल हुआ था, वहां आपको एक नया शहर बसाना चाहिए, क्योंकि चीते केवल उसी स्थान से भाग जाते हैं, जहां मनुष्यों को एक बड़ी संख्या में बसना हो।”

अतएव नया शहर बसाने के लिए मजदूर लोग काम पर लगा दिये गए। अंत में जमीन को कठोरता देखने के लिए एक स्थान पर उन्होंने लोहे की एक मोटी कील गाड़ी। उस समय अचानक पृथ्वी में एक हल्का-सा कंपन हो उठा।

“ठहरो!” पंडित लोग चिल्ला पड़े, “इसकी नोक सर्पराज शेषनाग की देह में धंस गई है। अब यहां शहर नहीं बनाना चाहिए।”

जब वह लोहे की कील पृथ्वी से बाहर निकाली गई तो वह वास्तव में शेषनाग के रक्त से लाल हो रही थी।

“यह तो बड़े दु:ख की बात है”, राजा बोला, “हम यहां शहर बनाने का निश्चय कर चुके हैं, इसलिए अब बनाना ही होगा।”

पंडितों ने क्रोध में आकर भविष्यवाणी की कि शहर पर कोई भारी विपत्ति आयेगी और राजा का अपना वंश भी शीघ्र ही नष्ट हो जायगा।

जमीन वहां की उपजाऊ थी और पानी भी खूब था। छ:सौ साल से अल्मोड़ा शहर उस पहाड़ पर बसा हुआ है और उसके चारों ओर फैले खेत बढ़िया फसलें पैदा करते हैं।

इस प्रकार बुद्धि रखते हुए भी वे पंडित अपनी भविष्यवाणी में गलत निकले। नि:संदेह वे सच्चे थे और उन्हें विश्वास था कि वे सत्य कह रहे हैं, किंतु लोग ऐसी गलती प्राय: करते हैं और अंध-विश्वास को वास्तविकता समझ लेते हैं।

संसार अंधविश्वासों से भरा पड़ा। सत्य को ढूंढ़ने का सबसे अच्छ तरीका यह है कि मनुष्य सदा अपने विचारों, कार्यों और वचनों में अधिकाधिक सच्चे और निष्कपट रहें, क्योंकि दूसरों को सब बातों में धोखा देना छोड़कर ही हम अपने-आपको कम-से-कम धोखा देना सीखते हैं।

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